Hindi Grammar ( हिंदी व्याकरण एवं साहित्य ):
21.05.21 विषय – वर्तनी

वर्तनी~ लिखने की रीति को वर्तनी या अक्षरी कहते हैं। यह हिज्जे (Spelling) भी कहलाती है। किसी भी भाषा की समस्त ध्वनियों को सही ढंग से उच्चरित करने के लिए ही वर्तनी की एकरूपता स्थिर की जाती है। जिस भाषा की वर्तनी में अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओं की ध्वनियों को ग्रहण करने की जितनी अधिक शक्ति होगी, उस भाषा की वर्तनी उतनी ही समर्थ समझी जायेगी। अतः वर्तनी का सीधा सम्बन्ध भाषागत ध्वनियों के उच्चारण से है।

भारत सरकार के शिक्षा मन्त्रालय की ‘वर्तनी समिति’ ने 1962 में जो उपयोगी और सर्वमान्य निर्णय किये,

✍🪴 वर्तनी संबंधित नियम 🪴🪴

(1) हिन्दी के विभक्ति-चिह्न, सर्वनामों को छोड़ शेष सभी प्रसंगों में, शब्दों से अलग लिखे जाएँ। जैसे- मोहन ने कहा; स्त्री को। सर्वनाम में- उसने, मुझसे, हममें, तुमसे, किसपर, आपको।

अपवाद- (क) यदि सर्वनाम के साथ दो विभक्तिचिह्न हों, तो उनमें पहला सर्वनाम से मिला हुआ हो और दूसरा अलग लिखा जाय। जैसे- उसके लिए; इनमें से।

(ख) सर्वनाम और उसकी विभक्ति के बीच ‘ही’, ‘तक’ आदि अव्यय का निपात हो, तो विभक्ति अलग लिखी जाय। जैसे- आप ही के लिए; मुझ तक को।

(2) संयुक्त क्रियाओं में सभी अंगभूत क्रियाएँ अलग रखी जायँ। जैसे- पढ़ा करता है; आ सकता है।

(3) ‘तक’, ‘साथ’ आदि अव्यय अलग लिखे जायँ। जैसे- आपके साथ; यहाँ तक।

(4) पूर्वकालिक प्रत्यय ‘कर’ क्रिया से मिलाकर लिखा जाय। जैसे- मिलाकर, रोकर, खाकर, सोकर।

(5) द्वन्द्वसमास में पदों के बीच हाइफ़न (-योजकचिह्न) लगाया जाय। जैसे- राम-लक्ष्मण, शिव-पार्वती आदि।

 6) ‘सा’ ‘जैसा’ आदि सारूप्यवाचकों के पूर्व हाइफ़न का प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसे- तुम-सा, राम-जैसा, चाकू-से तीखे।

(7) तत्पुरुषसमास में हाइफ़न का प्रयोग केवल वहीं किया जाय, जहाँ उसके बिना भ्रम होने की सम्भावना हो, अन्यथा नहीं। जैसे- भू-तत्त्व।

(9) संस्कृतमूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी में सामान्यतः संस्कृतवाला रूप ही रखा जाय। परन्तु, जिन शब्दों के प्रयोग में हिन्दी में हलन्त का चिह्न लुप्त हो चुका है, उनमें हलन्त लगाने की कोशिश न की जाय; जैसे- महान, विद्वान, जगत। किन्तु सन्धि या छन्द समझाने की स्थिति हो, तो इन्हें हलन्तरूप में ही रखना होगा; जैसे- जगत्+नाथ।

(10) जहाँ वर्गों के पंचमाक्षर के बाद उसी के वर्ग के शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो वहाँ अनुस्वार का ही प्रयोग किया जाय; जैसे- वंदना, नंद, नंदन, अंत, गंगा, संपादक आदि।

(11) नहीं, मैं, हैं, में इत्यादि के ऊपर लगी मात्राओं को छोड़कर शेष आवश्यक स्थानों पर चन्द्रबिन्दु का प्रयोग करना चाहिए, नहीं तो हंस और हँस तथा अँगना और अंगना का अर्थभेद स्पष्ट नहीं होगा।

(12) अरबी-फारसी के वे शब्द जो, हिन्दी के अंग बन चुके हैं और जिनकी विदेशी ध्वनियों का हिन्दी ध्वनियों में रूपान्तर हो चुका है, उन्हें हिन्दी रूप में ही स्वीकार किया जाय। जैसे- जरूर, कागज आदि। किन्तु, जहाँ उनका शुद्ध विदेशी रूप में प्रयोग अभीष्ट हो, वहाँ उनके हिन्दी में प्रचलित रूपों में यथास्थान ‘नुक्ते’ लगाये जायँ, ताकि उनका विदेशीपन स्पष्ट रहे। जैसे- राज, नाज।

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