💟👉#नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 क्या है?

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👉भारत एक सेक्युलर, संप्रभुता संपन्न और शांतिप्रिय देश है. शायद यह पूरी दुनिया में ‘विविधता में एकता’ का परिचय करने वाला यह अकेला देश है. शायद यही कारण है कि कई देशों के नागरिक भारत की नागरिकता पाने को आतुर रहते हैं.

💟👉नागरिकता (संशोधन) 2019 क्या है?

👉दरअसल नागरिकता (संशोधन) विधेयक (Citizenship Amendment Bill) एक ऐसा बिल है जो कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले 6 समुदायों के अवैध शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की बात करता है. इन 6 समुदायों ((हिन्दू, बौद्ध, सिख, ईसाई, जैन, तथा पारसी) में इन देशों से आने वाले मुसलमानों को यह नागरिकता नहीं दी जाएगी और यही भारत में इसके विरोध की जड़ है

💟👉 नागरिकता संशोधन विधेयक में क्या है प्रस्ताव?

👉 नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 को 19 जुलाई 2016 को लोकसभा में पेश किया गया था। 12 अगस्त 2016 को इसे संयुक्त संसदीय समिति को सौंप दिया गया था। समिति ने इस साल जनवरी में इस पर अपनी रिपोर्ट दी थी। अगर यह विधेयक पास हो जाता है, तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के सभी गैरकानूनी प्रवासी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भारतीय नागरिकता के योग्य हो जाएंगे।

👉इसके अलावा इन तीन देशों के सभी छह धर्मों के लोगों को भारतीय नागरिकता पाने के नियम में भी छूट दी जाएगी। ऐसे सभी प्रवासी जो छह साल से भारत में रह रहे होंगे, उन्हें यहां की नागरिकता मिल सकेगी। पहले यह समय सीमा 11 साल थी। विधेयक पर क्यों है विवाद? इस विधेयक में गैरकानूनी प्रवासियों के लिए नागरिकता पाने का आधार उनके धर्म को बनाया गया है। इसी प्रस्ताव पर विवाद छिड़ा है। क्योंकि अगर ऐसा होता है तो यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा, जिसमें समानता के अधिकार की बात कही गई है। कब से चर्चा में गृह मंत्रालय ने वर्ष 2018 में अधिसूचित किया था कि सात राज्यों के कुछ जिलों के संग्राहक भारत में रहने वाले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से सताए गए अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने के लिए ऑनलाइन आवेदन स्वीकार कर सकते हैं। राज्यों और केंद्र से सत्यापन रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद उन्हें नागरिकता दी जाएगी। कौन से राज्य गृह मंत्रालय ने छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5 और 6 के तहत प्रवासियों को नागरिकता और प्राकृतिक प्रमाणपत्र प्रदान करने के लिये कलेक्टरों को शक्तियां दी हैं। पिछले ही वर्ष गृह मंत्रालय ने नागरिकता नियम, 2009 की अनुसूची 1 में बदलाव भी किया था।

💟👉भारतीय मूल

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👉नए नियमों के तहत भारतीय मूल के किसी भी व्यक्ति द्वारा निम्नलिखित मामलों पर नागरिकता की मांग करते समय अपने धर्म के बारे में घोषणा करना अनिवार्य होगा: भारतीय नागरिक से विवाह करने वाले किसी व्यक्ति के लिए। भारतीय नागरिकों के ऐसे बच्चे जिनका जन्म विदेश में हुआ हो। ऐसा व्यक्ति जिसके माता-पिता भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत हों। ऐसा व्यक्ति जिसके माता-पिता में से कोई एक स्वतंत्र भारत का नागरिक रहा हो। गौरतलब है कि नागरिकता अधिनियम, 1955 में धर्म का कोई उल्लेख नहीं है। यह अधिनियम पांच तरीकों से नागरिकता प्रदान करता है: जन्म, वंश, पंजीकरण, नैसर्गिक और देशीयकरण के आधार पर। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2016 नागरिकता संशोधन अधिनियम का प्रस्ताव नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन के लिये पारित किया गया था। नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 में पड़ोसी देशों (बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान) से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई अल्पसंख्यकों (मुस्लिम शामिल नहीं) को नागरिकता प्रदान करने की बात कही गई है, चाहे उनके पास जरूरी दस्तावेज हों या नहीं। नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार नैसर्गिक नागरिकता के लिये अप्रवासी को तभी आवेदन करने की अनुमति है, जब वह आवेदन करने से ठीक पहले 12 महीने से भारत में रह रहा हो और पिछले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में रहा हो। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2016 में इस संबंध में अधिनियम की अनुसूची 3 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है ताकि वे 11 वर्ष की बजाय 6 वर्ष पूरे होने पर नागरिकता के पात्र हो सकें। भारत के विदेशी नागरिक (Overseas Citizen of India -OCI) कार्डधारक यदि किसी भी कानून का उल्लंघन करते हैं तो उनका पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2016 से संबंधित समस्याएं यह संशोधन पड़ोसी देशों से आने वाले मुस्लिम लोगों को ही ‘अवैध प्रवासी’ मानता है, जबकि लगभग अन्य सभी लोगों को इस परिभाषा के दायरे से बाहर कर देता है। इस प्रकार यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

👉यह कुल मिलकर 126 वां संविधान संशोधन बिल होगा. इसे लोकसभा में पेश करने की मंजूरी मिल गयी है.

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