बलाघात

शब्द का उच्चारण करते समय किसी एक अक्षर पर दूसरे अक्षरों की तुलना में कुछ अधिक बल दिया जाता है। जैसे- ‘जगत’ में ज और त की तुलना में ‘ग’ पर अधिक बल है। इसी प्रकार ‘समान’ में ‘मा’ पर अधिक बल है। इसे बलाघात कहा जाता है।

शब्द में बलाघात का अर्थ पर प्रभाव नहीं पड़ता। वाक्य में बलाघात से अर्थ में परिवर्तन आ जाता है। उदाहरण के लिए एक वाक्य देखिए-

राम मोहन के साथ मुम्बई जाएगा।

इस वाक्य में भिन्न-भिन्न शब्दों पर बलाघात से निकलने वाला अर्थ कोष्ठक में दिया गया है-

राम सोहन के साथ मुम्बई जाएगा। (राम जाएगा, कोई और नहीं)

राम सोहन के साथ मुम्बई जाएगा। (सोहन के साथ जाएगा किसी और के साथ नहीं)

राम सोहन के साथ मुम्बई जाएगा। (मुम्बई जाएगा, कहीं और नहीं)

राम सोहन के साथ मुम्बई जाएगा। (निश्चय ही जाएगा)

यह अर्थ केवल उच्चारण की दृष्टि से है, लिखने में यह अंतर लक्षित नहीं हो सकता।

बलाघात दो प्रकार का होता है– (1) शब्द बलाघात (2) वाक्य बलाघात।

(1) शब्द बलाघात– प्रत्येक शब्द का उच्चारण करते समय किसी एक अक्षर पर अधिक बल दिया जाता है।

जैसे– गिरा मेँ ‘रा’ पर।

हिन्दी भाषा में किसी भी अक्षर पर यदि बल दिया जाए तो इससे अर्थ भेद नहीं होता तथा अर्थ अपने मूल रूप जैसा बना रहता है।

(2) वाक्य बलाघात– हिन्दी में वाक्य बलाघात सार्थक है। एक ही वाक्य मेँ शब्द विशेष पर बल देने से अर्थ में परिवर्तन आ जाता है। जिस शब्द पर बल दिया जाता है वह शब्द विशेषण शब्दों के समान दूसरों का निवारण करता है। जैसे– ‘रोहित ने बाजार से आकर खाना खाया।’

उपर्युक्त वाक्य मेँ जिस शब्द पर भी जोर दिया जाएगा, उसी प्रकार का अर्थ निकलेगा। जैसे– ‘रोहित’ शब्द पर जोर देते ही अर्थ निकलता है कि रोहित ने ही बाजार से आकर खाना खाया। ‘बाजार’ पर जोर देने से अर्थ निकलता है कि रोहित ने बाजार से ही वापस आकर खाना खाया। इसी प्रकार प्रत्येक शब्द पर बल देने से उसका अलग अर्थ निकल आता है। शब्द विशेष के बलाघात से वाक्य के अर्थ में परिवर्तन आ जाता है। शब्द बलाघात का स्थान निश्चित है किन्तु वाक्य बलाघात का स्थान वक्ता पर निर्भर करता है, वह अपनी जिस बात पर बल देना चाहता है, उसे उसी रूप मेँ प्रस्तुत कर सकता है

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