विभाव दो प्रकार के होते हैं-
(क) आलंबन विभाव –
जब किसी विभाव को देखकर हमारे मन में भी ठीक वैसा ही भाव उत्पन्न हो, तो वह उत्पन्न भाव ‘आलंबन विभाव’ कहलाता है।
जैसे – किसी हँसते हुए व्यक्ति को देखकर हँसी आना। प्रेमी युगल को प्रेम करते देखकर मन में प्रेम उमड़ना आदि। आलंबन विभाव के दो भेद होते हैं
(अ) आलंबन- जिसे देखकर, पढ़कर या सुनकर भाव उत्पन्न हो, वह आलंबन कहलाता है। जैसे- राम को देखकर रावण क्रोधित हो गया ।
यहाँ ‘राम’ आलंबन हुए क्योंकि उनको देखकर ही क्रोध उत्पन्न हुआ है।
(आ) आश्रय – जिसके हृदय में भाव उत्पन्न हो, उसे आश्रय कहते हैं। जैसे- राम को देखकर रावण क्रोधित हो गया । इस वाक्य में ‘रावण’ के हृदय में भाव उत्पन्न हुआ है।अतः रावण‘आश्रय’ हुआ।
(ख) उद्दीपन विभाव-
कभी-कभी किसी को देखकर सुनकर या पढ़कर हमारे मन में भी ठीक वैसे ही भाव उत्पन्न हो जाते हैं । किन्तु किन्हीं परिस्थितियों के कारण जब वे भाव और अधिक प्रगाढ़ हो जाएँ , तो उन परिस्थितियों को उद्दीपन विभाव कहते हैं। अर्थात् स्थायी भाव को और अधिक बढ़ाने या भड़काने में सहायक कारण को उद्दीपन विभाव कहते हैं।
जैसे- करुण रस के स्थायी भाव शोक के लिए सामने पड़ी हुई किसी अपने की लाश आलंबन विभाव है। लाश के साथ बैठे उदास लोग, घर वालों का रूदन-क्रंदन, मृतक के अच्छाइयों की चर्चा,लाश उठाने की तैयारियाँ आदि उद्दीपन विभाव हैं क्योंकि ये शोक को और अधिक बढ़ाते हैं।
उद्दीपन विभाव दो होते हैं :–
(अ) आलंबन गत उद्दीपन – जिसे देख कर कोई भाव उत्पन्न हुआ हो और उसकी क्रियाओं या चेष्टाओं से क्रमश: उसमे और बढ़ोत्तरी हो रही हो। ऐसी क्रियाओं या चेष्टाओं को आलंबन गत उद्दीपन कहा जाता है। जैसे – किसी हास्य अभिनेता (जोकर) को देखकर मुस्कुरा देना और फ़िर उसकी वे सारी बातें , उसके हाव-भाव आदि जिन्हें देख-देख कर हम ठहाका लगाते हैं या लोट-पोट हो जाते हैं। वे सारी बातें और हाव-भाव आलंबन गत उद्दीपन हैं।
(आ) वातावरण गत उद्दीपन- किसी को देख कर जब कोई भाव उत्पन्न हो और वातावरण , प्रकृति या किन्हीं अन्य दूसरे कारणों के चलते जब उस भाव में बढ़ोत्तरी हो , तब वे बाहरी कारण वातावरण गत उद्दीपन कहलाते हैं।
जैसे – भय का भाव । अंधेरी रात , एकांत , सरसराहट , हिंसक पशुओं या उल्लू आदि की आवाज़ भय को बढ़ाते हैं, अत: ये वातावरण गत उद्दीपन कहलाएँगे